भारत में इस साल कम से कम 84 लोगों की मौत भीषण गर्मी से हुई: अध्ययन
अविनाश
- 22 Aug 2025, 05:32 PM
- Updated: 05:32 PM
नयी दिल्ली, 22 अगस्त (भाषा) एक नए विश्लेषण में पाया गया है कि इस साल फरवरी से जुलाई के बीच देश भर में भीषण गर्मी (हीटस्ट्रोक) के कारण कम से कम 84 लोगों की मौत दर्ज की गई।
गैर-लाभकारी संस्था ‘हीटवॉच’ की रिपोर्ट, ‘स्ट्रक बाय हीट: ए न्यूज एनालिसिस ऑफ हीटस्ट्रोक डेथ्स इन इंडिया इन 2025’ में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में ‘हीटस्ट्रोक’ से होने वाली मौतों की सटीक संख्या विभिन्न वजहों से सामने नहीं आ पाती।
इसके विपरीत, सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत ‘पीटीआई-भाषा’ द्वारा प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने इस साल एक मार्च से 24 जून के बीच ‘हीटस्ट्रोक’ के 7,192 संदिग्ध मामलों और केवल 14 मौतों की सूचना दी।
कई भाषाओं में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्टों की समीक्षा पर आधारित ‘हीटवॉच’ विश्लेषण में पाया गया कि महाराष्ट्र में सबसे अधिक 17 मौतें हुईं, उसके बाद उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में 15-15 मौतें हुईं।
गुजरात में 10 मौतें, असम में छह, जबकि बिहार, पंजाब और राजस्थान में पांच-पांच मौतें दर्ज की गईं। ओडिशा में तीन मौतें हुईं, जबकि केरल, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में एक-एक मौत हुई।
रिपोर्ट में पाया गया कि अधिकतर पीड़ित बुज़ुर्ग, बाहरी कामगार और दिहाड़ी मजदूर थे। इसके अलावा किसानों के खेतों में गिरने से लेकर बाहर खेलते समय बच्चों और किशोरों की मौत तक की घटनाएं भी शामिल थीं।
इस साल 26 फरवरी को नवी मुंबई में 13 वर्षीय छात्र की मौत इस मौसम के दौरान सबसे पहले होने वाली मौतों में से एक थी, जिससे यह पता चलता है कि भारत में किस तरह लू पहले आ रही है और लंबे समय तक चल रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश में हीटस्ट्रोक से बीमार होने के सबसे अधिक 700 मामले सामने आए, उसके बाद ओडिशा (348), राजस्थान (344) और उत्तर प्रदेश (325) का स्थान रहा।
कुल मिलाकर, ‘हीटवॉच डेटासेट’ ने इस अवधि के दौरान देश भर में गर्मी से संबंधित बीमारियों के 2,287 मामले दर्ज किए, हालांकि इसने दावा किया कि ‘कम रिपोर्टिंग’ के कारण वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने की संभावना है।
यह निष्कर्ष विशेषज्ञों और जून में ‘पीटीआई-भाषा’ की जांच से जुड़ी चिंताओं को प्रतिध्वनित करता है, जिससे पता चला कि भारत में गर्मी से संबंधित बीमारियों और मौतों की जानकारी टुकड़ों में उपलब्ध कराई जाती है तथा विभिन्न एजेंसियां व्यापक रूप से भिन्न आंकड़े प्रस्तुत करती हैं।
वर्ष 2015-2022 के लिए, एनसीडीसी ने गर्मी से संबंधित 3,812 मौतें दर्ज कीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 8,171 और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 3,436 मौतों की सूचना दी।
‘हीटवॉच’ ने कहा कि नए राष्ट्रीय फोरेंसिक दिशानिर्देशों के बावजूद, जो तापमान रिकॉर्ड किये बिना हीटस्ट्रोक को मृत्यु का कारण मानने के लिए विसरा परीक्षण की अनुमति देता है, चिकित्सक शायद ही कभी इसका उपयोग करते हैं।
परिणामस्वरूप, कई मामलों का कारण हृदय गति रुकना, निर्जलीकरण या स्ट्रोक को बताया जाता है, जिससे गर्मी की बात समाप्त हो जाती है।
रिपोर्ट में आईएमडी की लू चेतावनी प्रणाली की भी आलोचना की गई है क्योंकि यह लगभग पूरी तरह से वायु के तापमान पर आधारित है, जबकि ‘‘वेट बल्ब ग्लोब’’ तापमान (डब्ल्यूबीजीटी) को इसमें शामिल नहीं किया गया है, जो संयुक्त रूप से गर्मी और आर्द्रता को मापता है।
इसमें ‘गैर-चेतावनी’ वाले दिनों में हुई मौतों के कई उदाहरणों का हवाला दिया गया है, जैसे कि तेलंगाना, गुजरात और महाराष्ट्र में श्रमिकों का बेहोश होकर गिर जाना, जब कोई आधिकारिक चेतावनी जारी नहीं की गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में गर्मी का संकट केवल मौसमी नहीं, बल्कि संरचनात्मक है। पूर्व-चेतावनी और अलर्ट सीमित हैं और इनसे बिना किसी सुरक्षा के खेतों, बाजारों और निर्माण स्थलों पर बेहोश हो रहे मज़दूरों को कोई वास्तविक सुरक्षा नहीं मिलती। हमारी रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि थोड़े-बहुत सुधार से काम नहीं चलेगा।’’
हीटवॉच की संस्थापक और रिपोर्ट की सह-लेखिका अपेक्षिता वार्ष्णेय ने कहा, ‘‘हमें तत्काल मजबूत, अति-स्थानीय निगरानी और प्रभावी पूर्व-चेतावनी प्रणालियों के साथ-साथ लागू करने योग्य श्रमिक सुरक्षा की आवश्यकता है।’’
रिपोर्ट की लेखिका शिवानी दास ने कहा, ‘‘हम बढ़ती गर्मी के खतरों को पहचान रहे हैं, लेकिन सिर्फ पहचान ही काफी नहीं है। कमी एक स्वास्थ्य-केंद्रित दृष्टिकोण की है, जो हर मामले को ध्यान में रखे, अस्पतालों को तैयार करे, कामगारों की सुरक्षा करे और ठंडे शहरों का निर्माण करे। ये व्यवस्थित कदम गर्म होते जलवायु में सचमुच जिंदगियां बचाएंगे।’’
संगठन ने एक राष्ट्रीय कानून बनाने की मांग की जिसके तहत फ्रांस, जापान, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देशों की तरह, दोपहर के काम पर प्रतिबंध लगाने, छायादार विश्राम क्षेत्र की व्यवस्था करने और कानूनी रूप से लागू किये जाने वाले ‘कार्य-अवकाश चक्र’ को अनिवार्य बनाने की बात शामिल है।
इसने यह भी आग्रह किया कि ऐसे प्रत्येक मामले की गणना की जाए और उसे केंद्रीकृत तथा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रजिस्ट्री में दर्ज किया जाए, ना कि प्रतिबंधित-पहुंच वाले एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच पर दर्ज किया जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन सहित कई विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि भारत ‘संभवतः गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या कम करके दिखा रहा है’ और आधिकारिक आंकड़े केवल बड़ी समस्या के एक छोटे से हिस्से को दिखाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल भीषण गर्मी में राजस्थान के कुछ हिस्सों में पारा 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।
भाषा संतोष