पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद 3.91 अरब रुपये जुटाने का अभियान शुरू किया
सिम्मी अविनाश
- 21 Aug 2025, 08:27 PM
- Updated: 08:27 PM
जम्मू, 21 अगस्त (भाषा) ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारी नुकसान के बाद पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) ने लश्कर-ए-तैयबा की विकेंद्रीकरण नीति की नकल करते हुए 300 से अधिक मस्जिदों के निर्माण की आड़ में बड़े पैमाने पर धन जुटाने का अभियान शुरू किया है। सुरक्षा अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने सीमा पार से मिली जानकारी का हवाला देते हुए बताया कि जैश-ए-मोहम्मद ने पाकिस्तान की ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) की मदद से धन जुटाने के लिए एक नया तरीका अपनाया है और वह इसके लिए अपने संस्थापक और सर्वाधिक वांछित आतंकवादी मसूद अजहर के परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित ‘ईजीपैसा’ और ‘सदापे’ जैसे ‘डिजिटल वॉलेट’ का इस्तेमाल कर रहा है ताकि वह वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) जैसी वैश्विक एजेंसियों की जांच से बच सके।
उन्होंने बताया कि 3.91 अरब रुपये जुटाने का यह अभियान कम से कम एक दशक के लिए जैश-ए-मोहम्मद के अभियानों और हथियारों के वित्तपोषण में मदद करेगा।
पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में भारतीय सशस्त्र बलों ने सात मई को पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी बुनियादी ढांचों पर मिसाइल हमले किए थे। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की जिसके बाद दोनों देशों के बीच सीमा पर भीषण सैन्य टकराव हुआ। बाद में दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव समाप्त करने पर 10 मई को सहमति बनी।
अधिकारियों ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय ‘मरकज सुभानअल्लाह’ के साथ-साथ चार अन्य प्रशिक्षण शिविर - मरकज बिलाल, मरकज अब्बास, महमोना जोया और सरगल प्रशिक्षण शिविर नष्ट हो गए।
अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तान सरकार ने इन नष्ट हो चुकी इमारतों के पुनर्निर्माण के लिए धन मुहैया कराने की घोषणा की है, वहीं जैश-ए-मोहम्मद ने पूरे पाकिस्तान में मस्जिदों के निर्माण की आड़ में 313 नए मरकज भवन बनाने के लिए 3.91 अरब रुपये इकट्ठा करने के मकसद से डिजिटल वॉलेट के जरिए ऑनलाइन धन जुटाने का अभियान शुरू किया है।
उन्होंने बताया कि फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया मंचों पर जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े छद्म अकाउंट और जैश-ए-मोहम्मद कमांडरों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे अकाउंट ने पोस्टर, वीडियो और मसूद अजहर का एक पत्र पोस्ट किया है, जिसमें समर्थकों से खुले दिल से दान देने का आग्रह किया गया है और कहा गया है कि प्रत्येक मस्जिद के निर्माण और सुचारू संचालन के लिए 1.25 करोड़ रुपये की आवश्यकता है।
अधिकारियों के अनुसार, कई डिजिटल वॉलेट खाते अजहर के भाई तल्हा अल सैफ (तल्हा गुलजार) और जैश-ए-मोहम्मद के हरिपुर जिला कमांडर आफताब अहमद के खाला बट्ट टाउनशिप में पंजीकृत मोबाइल नंबर से जुड़े पाए गए।
उन्होंने बताया कि धन जुटाने वाला एक अन्य माध्यम अजहर के बेटे अब्दुल्ला अजहर (अब्दुल्ला खान) के एक मोबाइल नंबर से जुड़ा है, जबकि खैबर पख्तूनख्वा में, जैश कमांडर सैयद सफदर शाह मनसेहरा जिले के ओघी स्थित मेलवाराह डाकघर के पास पंजीकृत एक नंबर के माध्यम से संगठन के मरकज के लिए चंदा इकट्ठा कर रहा है।
उन्होंने बताया कि इनके अलावा 250 से अधिक ईजीपैसा वॉलेट का इस्तेमाल जैश के लिए धन जुटाने के मकसद से किया जा रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि सोशल मीडिया पर अपीलों के साथ-साथ आतंकवादी संगठन ने अपने आधिकारिक प्रचार चैनल ‘ एमएसटीडी ऑफिशियल’ के माध्यम से अजहर के भाई अल सैफ की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग प्रसारित की, जिसमें समर्थकों से प्रति व्यक्ति 21,000 रुपये का योगदान करने का आग्रह किया गया।
अधिकारियों ने बताया कि इन मस्जिदों के निर्माण के पीछे जैश-ए-मोहम्मद के दो मुख्य उद्देश्य हो सकते हैं - पहला, लश्कर-ए-तैयबा के विशाल मरकज नेटवर्क की नकल करना और अपने प्रशिक्षण शिविरों का विकेंद्रीकरण करना ताकि भविष्य में भारत के हमलों का पाकिस्तान में उसके आतंकवादी ढांचे पर कम से कम असर पड़े। दूसरा, अजहर और उसके परिवार के लिए सुरक्षित एवं आलीशान पनाहगाह बनाना ताकि पाकिस्तान उनके अपने देश में होने से इनकार कर सके।
जैश-ए-मोहम्मद का दावा है कि हर मरकज की लागत 1.25 करोड़ रुपये होगी, लेकिन अनुमान है कि बिलाल के आकार के एक मरकज की लागत सिर्फ 40 या 50 लाख रुपये होगी। सुभानअल्लाह या उस्मान-ओ-अली जैसे बड़े मरकज की लागत लगभग 10 करोड़ रुपये हो सकती है, लेकिन यह संभावना नहीं है कि सभी 313 मरकज इतने बड़े होंगे।
अधिकारियों ने कहा कि जैश-ए-मोहम्मद-हमास-टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान) के संबंधों और उनके नेतृत्व की बैठकों को देखते हुए बाकी राशि का इस्तेमाल उन्नत हथियार हासिल करने और टीटीपी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन या क्वाडकॉप्टर हासिल करने के लिए किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई जैश-ए-मोहम्मद को काले बाजार से सस्ते दामों पर हथियार खरीदने में मदद करती है।
भाषा सिम्मी