झारखंड डीजीपी की नियुक्ति के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाई से उच्चतम न्यायालय का इनकार
सिम्मी प्रशांत
- 18 Aug 2025, 09:26 PM
- Updated: 09:26 PM
नयी दिल्ली, 18 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली अवमानना याचिकाओं पर विचार करने से सोमवार को इनकार करते हुए कहा कि उसके अवमानना अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल राजनीतक बदला लेने के लिए नहीं किया जा सकता।
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा, ‘‘झारखंड मामले में हम नहीं चाहते कि अवमानना के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल राजनीतिक बदला लेने के लिए किया जाए। अगर आपको किसी खास नियुक्ति से कोई समस्या है तो कैट (केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण) में जाएं... मैं बार-बार कहता रहा हूं कि अगर आपको अपना राजनीतिक बदला लेना है तो मतदाताओं के पास जाएं।’’
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया भी शामिल हैं।
पीठ ने अखिल भारतीय आदिवासी विकास समिति, झारखंड और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी द्वारा दायर अवमानना याचिकाओं सहित अन्य याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जनहित याचिका तंत्र वंचित वर्गों को न्याय तक पहुंच प्रदान करने के लिए तैयार किया गया था। यह प्रतिस्पर्धी अधिकारियों के बीच पदोन्नति या नियुक्तियों को चुनौती देने का साधन नहीं बन सकता।’’
पीठ के समक्ष दायर याचिकाओं में गुप्ता की नियुक्ति को प्रकाश सिंह दिशानिर्देशों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई थी। इन दिशानिर्देशों के तहत संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सूचीबद्ध तीन वरिष्ठतम आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारियों में से डीजीपी का चयन करना अनिवार्य है और उसके लिए दो वर्ष का निश्चित कार्यकाल निर्धारित किया गया है।
गुप्ता पर आरोप है कि उनकी सेवानिवृत्ति की आयु 30 अप्रैल को ही पूरी हो चुकी थी और याचिका में कहा गया था कि राज्य द्वारा उनके लिए सेवा विस्तार की मांग करना नियमों के विरुद्ध है।
केंद्र ने सेवा विस्तार के प्रस्ताव को कथित तौर पर अस्वीकार कर दिया।
सुनवाई के दौरान न्यायमित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय में लंबित रिट याचिकाएं वापस ले ली जाएंगी और समेकित निर्णय के लिए शीर्ष अदालत में दायर की जाएंगी।
पीठ ने कहा कि अवमानना याचिकाओं में से एक मूलतः झारखंड के मुख्य सचिव के खिलाफ थी, जिसमें प्रकाश सिंह मामले में फैसले का पालन न करने का आरोप लगाया गया था।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अगर किसी अधिकारी को लगता है कि उसे अवैध रूप से दरकिनार किया गया है या उसके वैध दावे को अस्वीकार किया गया है, तो कानून के तहत उपचार उपलब्ध हैं। हम अवमानना क्षेत्राधिकार को ऐसे सेवा विवादों के लिए मंच में नहीं बदल सकते।’’
भाषा सिम्मी