मथुरा में “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल की मांग खारिज
राजेंद्र, रवि कांत
- 04 Jul 2025, 07:07 PM
- Updated: 07:07 PM
प्रयागराज, चार जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा में “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल के लिए निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।
मूल वाद के साथ अन्य संबंधित मामलों में आगे की सुनवाई के दौरान “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल के लिए संबंधित स्टेनोग्राफर को निर्देश जारी करने का अनुरोध करते हुए एक आवेदन ए-44 दाखिल किया गया था।
इस आवेदन के पक्ष में अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा हलफनामा दाखिल किया गया था। वहीं दूसरी ओर, प्रतिवादियों की तरफ से लिखित आपत्ति दाखिल की गई थी।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े मूल मुकदमों की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बिल्कुल उसी स्थान पर बनाई गई है जिसे ऐतिहासिक रूप से भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्म स्थान माना जाता है। यह स्थान हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व का है।
वहीं, मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलील में कहा कि मौजूदा आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के इरादे से दाखिल किया गया है। वह मस्जिद 400 वर्षों से मौजूद है और इसकी मौजूदगी को मौजूदा आवेदन के द्वारा कम आंकने का प्रयास किया गया है। इस मुकदमे की सुनवाई अभी शुरू होनी है। मौजूदा आवेदन को स्वीकार करना, यह पूर्व निर्धारण करने जैसा होगा कि शाही ईदगाह मस्जिद, एक मस्जिद नहीं है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा, “इस मुकदमे में पक्षों की दलीलों को सुनने से पता चलता है कि जहां शाही ईदगाह मस्जिद मौजूद है, उस स्थान के संबंध में दोनों पक्षों के बीच विवाद है। दोनों पक्षों ने इस संपत्ति की मिल्कियत पर दावे किए हैं। इसलिए इसे विवादित संपत्ति कहा जा सकता है।”
अदालत ने कहा, “दोनों पक्षों ने अपनी दलीलों में भी उस ढांचे को शाही ईदगाह मस्जिद कहा है और इस चरण में जहां मुकदमों की सुनवाई अभी शुरू होनी है और अभी मुद्दे तक तय नहीं हुए हैं, “शाही ईदगाह मस्जिद” को “विवादित ढांचा” के तौर पर संदर्भित करने का स्टेनोग्राफर को निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं है। मुकदमे में संपत्ति की पहचान के संबंध में कोई विवाद नहीं है, इसलिए आवेदन ए-44 को इस चरण में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।”
अदालत ने इस मुकदमे की अगली सुनवाई की तिथि 18 जुलाई, 2025 तय की।
उल्लेखनीय है कि हिंदू पक्ष ने शाही ईदगाह ढांचा हटाने के बाद जमीन का कब्जा लेने और वहां मंदिर बहाल करने के लिए 18 मुकदमे दाखिल किए हैं।
इससे पूर्व, एक अगस्त, 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हिंदू पक्षों की ओर से दायर इन मुकदमों की पोषणीयता (सुनवाई योग्य) को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि ये मुकदमे समय सीमा, वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से बाधित नहीं हैं। पूजा स्थल अधिनियम किसी भी धार्मिक ढांचे को जो 15 अगस्त, 1947 को मौजूद था, उसे परिवर्तित करने से रोकता है।
अदालत ने 23 अक्टूबर, 2024 को कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में 11 जनवरी, 2024 के आदेश को वापस लेने की मुस्लिम पक्ष की अर्जी खारिज कर दी थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी, 2024 के अपने निर्णय में हिंदू पक्षों की ओर से दायर सभी मुकदमों को समेकित कर दिया था।
यह विवाद मथुरा में मुगल सम्राट औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है जिसे कथित तौर पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया है।
भाषा
राजेंद्र, रवि कांत