साहित्य जगत ने मुश्ताक को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिलने की सराहना की
अविनाश
- 21 May 2025, 08:50 PM
- Updated: 08:50 PM
नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) साहित्य जगत की प्रमुख हस्तियों ने कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक और अनुवादक दीपा भास्ती को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिलने पर बधाई दी और भारतीय भाषाओं में अनुवाद के बढ़ते महत्व की सराहना करते हुए उम्मीद जताई है कि दुनिया हिंदी या अंग्रेजी से आगे बढ़कर भारतीय साहित्य से जुड़ेगी।
लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील मुश्ताक के कन्नड़ लघु कथा संग्रह ‘हृदय दीप’ के अनूदित संस्करण ‘हार्ट लैंप’ को लंदन में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पहली कन्नड़ कृति है जिसे 50,000 पाउंड के अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है। दीपा भास्ती ने इस किताब का कन्नड़़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया था और ‘पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया’ ने इसे प्रकाशित किया था।
गीतांजलि श्री अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय लेखिका हैं। वर्ष 2022 में गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अनुवादित संस्करण ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को यह पुरस्कार मिला था। ‘रेत समाधि’ का अंग्रेजी में अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया था।
गीतांजलि श्री ने बानू मुश्ताक और अनुवादक दीपा भास्ती को बधाई दी।
गीतांजलि श्री (67) ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा ‘‘...दुनिया ने भारतीय साहित्य के बारे में थोड़ा-बहुत जाना है, लेकिन सिर्फ़ एक भाषा के जरिए। आज फर्क यह आया है कि लोग भाषाओं की विविधता को तलाश रहे हैं। देश की बहुलता और इन दूसरी भाषाओं की समृद्धि को देखना जरूरी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह अद्भुत है कि दूसरी भाषा की कृति को यह पुरस्कार मिला है। मैं मुश्ताक और भास्ती को बधाई देती हूं। हम सभी को बहुत-बहुत बधाई, क्योंकि हम उस बड़े समुदाय का हिस्सा हैं। जहां तक वैश्विक प्रभाव की बात है, उनके लिए इसका मतलब है ज़्यादा से ज़्यादा किताबें दिखेंगी...दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अलग-अलग भाषाओं के साहित्य को मान्यता मिल रही है।’’
मुश्ताक की 12 लघु कहानियों का यह संग्रह दक्षिण भारत के पितृसत्तात्मक समुदाय में हर दिन महिलाओं के लचीले रुख, प्रतिरोध और उनकी हाजिरजवाबी का वर्णन करता है, जिसे मौखिक कहानी कहने की समृद्ध परंपरा के माध्यम से जीवंत रूप दिया गया है। इसमें मुश्ताक की 1990 से लेकर 2023 तक 30 साल से अधिक समय में लिखी कहानियां हैं।
अनिरुद्धन वासुदेवन द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित पेरुमल मुरुगन के तमिल उपन्यास ‘पाइरे’ को 2023 में सूची में शामिल किया गया था।
पेरुमल मुरुगन के अनुसार, द्रविड़ भाषा को यह मान्यता अंग्रेजी और हिंदी से परे भारत की भाषाई विविधता की वैश्विक स्वीकृति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
तमिल में 50 से अधिक किताबें लिख चुके प्रसिद्ध लेखक मुरुगन ने कहा, ‘‘पुरस्कार से लेखकों को प्रोत्साहन मिलेगा, क्योंकि अब उनकी रचनाएं विभिन्न देशों के व्यापक पाठकों तक पहुंचेंगी। हम विभिन्न विदेशी भाषाओं जैसे रूसी से अंग्रेजी में अनुवाद पढ़ते रहे हैं, अब मुझे विश्वास है कि भारतीय लेखकों की कृतियों का भी विदेशी भाषाओं में अनुवाद होगा। हमारे पास भारतीय भाषाओं में बहुत सुंदर साहित्य है।’’
कर्नाटक के हासन में रहने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ता बानू जाति और वर्ग व्यवस्था की आलोचना करने वाले बंदया साहित्यिक आंदोलन के दौरान प्रमुखता से उभरीं।
हासन में जन्मी बानू मुश्ताक (77) ने कानून की डिग्री लेने से पहले कुछ समय तक लंकेश पत्रिका के साथ पत्रकार के रूप में भी काम किया था। उनके पिता एक वरिष्ठ स्वास्थ्य निरीक्षक थे और उनकी मां गृहिणी थीं।
वह अब भी वकालत कर रही हैं और नियमित रूप से अदालत जाती हैं।
मुश्ताक की किताबों में पारिवारिक और सामुदायिक तनावों का चित्रण किया गया है और उनके लेख ‘‘महिलाओं के अधिकारों के लिए उनके अथक प्रयासों और सभी प्रकार के जातिगत और धार्मिक उत्पीड़न का विरोध करने के उनके प्रयासों की गवाही देते हैं’’।
पुरस्कार के बाद इस किताब के लिए पूछताछ करने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई है तथा साहित्य जगत भारत के समृद्ध बहुभाषी साहित्य को मिल रही मान्यता से प्रसन्न है। पेंगुइन की ‘कमीशनिंग एडिटर’ मौतुशी मुखर्जी ने बधाई संदेशों की बाढ़ के बीच लघु कथाएं और अनुवाद प्रकाशित करने में आने वाली चुनौतियों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया।
हालांकि, उन्होंने कहा कि मुश्ताक के ‘‘मौलिक काम और जीवन पर कविता के मजबूत दृष्टिकोण’’ ने उन्हें इन बाधाओं से निपटने में मदद की।
मुखर्जी ने कहा, ‘‘मैं उनके काम से भी प्रेरित थी और जिस तरह से वह उन महिलाओं का समर्थन करना चाहती थीं जिनके बारे में उन्होंने लिखा था। इन सब बातों ने भी मुझे इस संग्रह का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया। किताब की यात्रा के आधे रास्ते में, ब्रिटेन के प्रकाशक एंड अदर स्टोरीज ने इसमें सहयोग किया और वहां से हमने गति पकड़ी और इसे अंत तक बनाए रखा।’’ मुखर्जी ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास था कि पुस्तक अंतिम सूची में जगह बनाएगी।
‘‘टॉम्ब ऑफ सैंड’’ और ‘‘हार्ट लैंप’’ दोनों ही किताबें पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित की गई हैं, और मुखर्जी ने उनकी सफलता का श्रेय प्रकाशन गृह के सशक्त अनुवाद कार्यक्रम और क्षेत्रीय साहित्य में अटूट विश्वास को दिया।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में मार्केटिंग के एसोसिएट डायरेक्टर के रूप में काम कर चुके हिंदी लेखक नवीन चौधरी ने कहा कि यह पुरस्कार गीतांजलि श्री के ‘‘टॉम्ब ऑफ सैंड’’ के ठीक तीन साल बाद मिला है।
उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार भारतीय भाषाओं और कथाओं की वैश्विक अपील के बारे में किसी भी तरह के संदेह को दूर करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सार्वभौमिक प्रतिध्वनि के साथ कहानियों को व्यक्त करने की भाषाओं की शक्ति की दृढ़ता से पुष्टि करता है।
समीक्षकों द्वारा प्रशंसित कन्नड़ उपन्यास ‘‘घाचर घोचर’’ के लेखक विवेक शानबाग ने इस पुरस्कार को कन्नड़ लोगों के लिए गौरव का क्षण बताया। उन्होंने मुश्ताक की कहानियों को ‘‘भावनात्मक’’ और पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के उत्पीड़न का एक शक्तिशाली चित्रण बताया।
उन्होंने मुश्ताक पर ‘‘मुस्लिम लेखिका’’ का ठप्पा लगाने के प्रति भी आगाह किया तथा इस बात पर जोर दिया कि उनकी कहानियों का संग्रह, एक मुस्लिम परिवार पर आधारित है, लेकिन यह हिंसा और पीड़ा के सार्वभौमिक विषयों को रेखांकित करता है।
भाषा आशीष