घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए संरक्षण अधिकारी नियुक्त करें: न्यायालय ने राज्यों से कहा
नेत्रपाल सुरेश
- 20 May 2025, 04:57 PM
- Updated: 04:57 PM
नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे जिला और तालुका स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की पहचान करें और उन्हें संरक्षण अधिकारी के रूप में नामित करें।
संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया ऐसा व्यक्ति होता है जिसका कार्य घरेलू हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करना होता है।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और महिला एवं बाल/समाज कल्याण विभागों के सचिवों को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी के रूप में नामित करने के लिए समन्वय स्थापित करने और संबंधित कार्य सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
इसने कहा, ‘‘वे अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, अधिनियम के तहत सेवाओं का प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने और इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार करके धारा 11 के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए भी कदम उठाएंगे।’’
पीठ ने निर्देश दिया कि उन क्षेत्रों में यह कार्य आज से छह सप्ताह के भीतर पूरा किया जाए, जहां सुरक्षा अधिकारी नियुक्त नहीं हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘राज्यों को संकटग्रस्त महिलाओं के लिए सेवा प्रदाताओं, सहायता समूहों और आश्रय गृहों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। प्रतिवादी राज्यों को भी इस उद्देश्य के लिए आश्रय गृहों की पहचान करनी होगी।’’
पीठ ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत अधिकारों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को आदेश दिया कि वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के सभी सदस्य सचिवों को निर्देश दें कि वे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुफ्त कानूनी सहायता और सलाह के अधिकार के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाएं।
पीठ ने कहा कि उन्हें इन प्रावधानों का पर्याप्त प्रचार भी करना होगा।
इसने कहा, ‘‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यदि कोई महिला कानूनी सहायता या सलाह के लिए संपर्क करती है, तो उसे शीघ्रता से सहायता प्रदान की जाएगी, क्योंकि अधिनियम प्रत्येक महिला को मुफ्त कानूनी सहायता के अधिकार की गारंटी देता है।’’
शीर्ष अदालत का यह निर्देश गैर-सरकारी संगठन ‘वी द वुमेन ऑफ इंडिया’ द्वारा दायर याचिका पर आया।
भाषा
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