ऐसा नियम नहीं कि राहत के लिए एक साल जेल में रहना जरूरी: न्यायालय ने धनशोधन मामले में जमानत दी
नेत्रपाल मनीषा
- 20 May 2025, 03:40 PM
- Updated: 03:40 PM
नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक व्यवसायी को जमानत प्रदान करते हुए कहा है कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि धनशोधन के आरोपी व्यक्ति को राहत मिलने से पहले एक साल जेल में रहना होगा।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 2,000 करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाला मामले में व्यवसायी अनवर ढेबर को जमानत दे दी और कहा, ‘‘जमानत पाने के लिए एक साल तक हिरासत में रहने का नियम नहीं है।’’
डेबर को पिछले वर्ष अगस्त में गिरफ्तार किया गया था और नौ महीने से अधिक समय उसने जेल में बिताया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कथित अपराध के लिए अधिकतम सजा सात वर्ष है तथा गवाहों की बड़ी संख्या को देखते हुए ढेबर के खिलाफ मुकदमा शीघ्र शुरू होने की संभावना नहीं है।
इसने कहा, ‘‘अपीलकर्ता को 8 अगस्त 2024 को गिरफ़्तार किया गया था। 40 गवाहों को पेश किया गया है। जांच जारी है। इस मामले में 450 गवाह हैं। इस तरह निकट भविष्य में मुकदमा शुरू होने की कोई संभावना नहीं है। अधिकतम सज़ा सात साल है।’’
सेंथिल बालाजी मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि ढेबर को कड़े नियमों व शर्तों के साथ जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि कोई पासपोर्ट है तो उसे यह जमा करना होगा।’’
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वकील ने पीठ से आरोपी को जमानत पर रिहा न करने का आग्रह करते हुए कहा कि उसे पिछले साल अगस्त में गिरफ्तार किया गया था और उसे हिरासत में लिए हुए एक साल भी नहीं हुआ है।
ईडी के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत विभिन्न मामलों में जमानत देने के लिए ‘‘एक साल की हिरासत के मानदंड’’ का पालन करती रही है और ढेबर के मामले में भी इसी मानदंड का पालन किया जाना चाहिए।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत से कहा कि वह विशेष अदालत द्वारा तय शर्तों पर आरोपी को एक सप्ताह के भीतर रिहा कर दे।
कांग्रेस नेता और रायपुर के महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर को धनशोधन के मामले में सबसे पहले गिरफ्तार किया गया था। यह मामला आयकर विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य राज्यों में शराब व्यापार में कथित कर चोरी और अनियमितताओं के संबंध में दायर आरोपपत्र से उत्पन्न हुआ था।
ईडी ने चार जुलाई को रायपुर की पीएमएलए अदालत में मामले में दायर अभियोजन शिकायत (आरोपपत्र) में दावा किया था कि छत्तीसगढ़ में 2019 में शुरू हुए ‘‘शराब घोटाले’’ में 2,161 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ और यह राशि राज्य के खजाने में जानी चाहिए थी।
ईडी ने आरोप लगाया कि वरिष्ठ नौकरशाहों, राजनीतिक नेताओं, उनके सहयोगियों और राज्य आबकारी विभाग के अधिकारियों का एक गिरोह अनियमितताओं में लिप्त था।
भाषा नेत्रपाल