इस्कॉन पर न्यायालय के फैसले ने श्रद्धालुओं के 25 साल के संघर्ष को किया समाप्त
सुभाष रंजन
- 16 May 2025, 06:08 PM
- Updated: 06:08 PM
बेंगलुरु, 16 मई (भाषा) अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) बेंगलुरु ने शुक्रवार को कहा कि यहां स्थित इस्कॉन मंदिर के संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले ने ‘‘स्वयंभू गुरुओं’’ के खिलाफ लंबी लड़ाई और श्रील प्रभुपाद को उनकी महासमाधि के बाद इस संस्था के आचार्य के रूप में स्थापित करने के श्रद्धालुओं के लंबे संघर्ष को समाप्त कर दिया है।
न्यायालय ने कहा कि बेंगलुरु में हरे कृष्ण मंदिर, इस शहर में स्थित इस्कॉन सोसाइटी का है। न्यायालय ने इस्कॉन बेंगलुरु की याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें इस्कॉन मुंबई के पक्ष में यहां के हरे कृष्ण मंदिर और शैक्षणिक परिसर पर नियंत्रण का आदेश दिया गया था।
इस्कॉन बेंगलुरु के अध्यक्ष मधु पंडित दास ने एक बयान में कहा, ‘‘यह इस्कॉन की आंतरिक लड़ाई उन स्वयंभू गुरुओं के खिलाफ थी, जो इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद के उत्तराधिकारी होने का दावा करते थे, जबकि उन्हें श्रील प्रभुपाद के महासमाधि लेने से पहले इसकी अनुमति नहीं थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘बल्कि, उन्होंने एक ऋत्विक प्रणाली स्थापित की, जिसके तहत इस्कॉन में सभी श्रद्धालु हर समय श्रील प्रभुपाद के प्रत्यक्ष शिष्य होंगे।’’
इस्कॉन के संस्थापक-आचार्य श्रील प्रभुपाद ने महासमाधि से कुछ समय पहले 1977 में दीक्षा की एक प्रणाली शुरू की। ऋत्विक प्रणाली के रूप में जानी जाने वाली इस प्रणाली में दीक्षा उनके द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों के माध्यम से दी जाती है। इस व्यवस्था के अनुसार, भविष्य के सभी श्रद्धालु श्रील प्रभुपाद के प्रत्यक्ष शिष्य बन जाते हैं, जो इस्कॉन के आचार्य बने रहते हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि वर्ष 2000 में इस्कॉन मुंबई के लोगों ने इस्कॉन बेंगलुरू के श्रद्धालुओं को निष्कासित करने की कोशिश की, क्योंकि उन्होंने ‘‘इस्कॉन के स्वयंभू गुरुओं की गुरुता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उनका दावा था कि इस्कॉन मुंबई सोसायटी, इस्कॉन बेंगलुरू सोसायटी की संपत्तियों का स्वामित्व रखती है।’’
दास ने कहा, ‘‘आज, 25 साल पुरानी अदालती लड़ाई उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले से समाप्त कर दी है, जिसमें कहा गया है कि बीडीए (बेंगलुरु विकास प्राधिकरण) ने इस्कॉन बेंगलुरू सोसायटी को मंदिर की जमीन आवंटित की थी - जो बेंगलुरू में पंजीकृत एक स्वतंत्र इस्कॉन सोसायटी है और संपत्ति और मंदिर निर्माण के लिए धन बेंगलुरू में जुटाया गया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस्कॉन मुंबई को इस्कॉन बेंगलुरु के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने से रोक दिया गया है। वे अब इस्कॉन से उन हजारों श्रद्धालुओं को निष्कासित नहीं कर सकते जो केवल श्रील प्रभुपाद को ही इस्कॉन के एकमात्र आचार्य मानना चाहते हैं।’’
इस्कॉन बेंगलुरु ने 23 मई 2011 के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए 2 जून 2011 को शीर्ष अदालत का रुख किया था।
इस्कॉन बेंगलुरु ने अपने पदाधिकारी कोडंडाराम दास के मार्फत याचिका में उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी, जिसमें बेंगलुरु की एक स्थानीय अदालत के 2009 के आदेश को पलट दिया गया था।
निचली अदालत ने पहले इस्कॉन बेंगलुरु के पक्ष में फैसला सुनाया था, उसके कानूनी अधिकार को मान्यता दी थी और इस्कॉन मुंबई के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा जारी की थी।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया और इस्कॉन मुंबई के जवाबी दावे को बरकरार रखा, जिससे प्रभावी रूप से उसे मंदिर का नियंत्रण मिल गया था।
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