फीस विवाद में अभिभावकों ने सरकार, एलजी से डीपीएस द्वारका का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का अनुरोध किया
सुरभि प्रशांत
- 15 May 2025, 07:45 PM
- Updated: 07:45 PM
नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) द्वारका में फीस वृद्धि के मुद्दे के बीच 100 से अधिक अभिभावकों ने अपने बच्चों की सुरक्षा की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया और राष्ट्रीय राजधानी में सरकार एवं उपराज्यपाल (एलजी) से विद्यालय को अपने नियंत्रण में लेने का अनुरोध किया।
याचिका में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में स्कूल ने अभिभावकों से अस्वीकृत फीस वसूलने के लिए दबाव डाला है और जिन अभिभावकों ने अस्वीकृत फीस का भुगतान नहीं करने पर जोर दिया उनके साथ दंडात्मक तौरतरीकों का इस्तेमाल किया है।
अभिभावकों ने दावा किया कि स्कूल ने अपने परिसर में बाउंसर रखकर अस्वस्थ, गंदे और अमानवीय व्यवहार का सहारा लिया और यह दर्शाना चाहा कि बाउंसर शिक्षकों की तुलना में बच्चों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने हालांकि अभिभावकों को याचिका के परिणाम के अधीन बढ़ी हुई फीस का 50 प्रतिशत जमा करने का सुझाव दिया, लेकिन अभिभावकों ने यह कहते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया कि उनके लिए पैसा जमा करना संभव नहीं है।
अभिभावकों के वकील ने कहा कि स्कूल ने फीस में 7,000 रुपये प्रति माह की वृद्धि की और अब इसे 9,000 रुपये मासिक बढ़ा दिया है।
अदालत मामले में अब शुक्रवार को सुनवाई करेगी।
याचिका 102 अभिभावकों ने दायर की है जिसमें कहा गया है कि उन्होंने उपराज्यपाल कार्यालय को विभिन्न प्रतिवेदन प्रस्तुत किए हैं, जिसमें डीपीएस द्वारका द्वारा भूमि आवंटन खंड के घोर उल्लंघन को उजागर किया गया है और दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग (डीओई) द्वारा पारित आदेशों का पालन नहीं करने का दावा किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि अस्वीकृत फीस का भुगतान नहीं करने के कारण बच्चों को परेशान किया जा रहा है।
इसके परिणामस्वरूप बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते हुए अभिभावकों ने अदालत से डीओई और उपराज्यपाल को तुरंत स्कूल को उनके नियंत्रण में लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘एक ओर शिक्षा निदेशालय का कार्यालय सतर्क प्रतीत होता है और स्कूल के कदाचार के बारे में पूरी तरह से अवगत है तथा रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली शिक्षा निदेशालय के कार्यालय को प्रशासक के कार्यालय यानि दिल्ली के उपराज्यपाल से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद नियंत्रण संभालने से कौन सी बात रोक रही है।’’ दिल्ली के उपराज्यपाल को भारत के संविधान के अनुच्छेद 239एए के तहत प्रशासक नियुक्त किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया था कि छात्रों को नियमित कक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया गया था और उन्हें पुस्तकालय तक ही सीमित रखा गया था, कैंटीन में प्रवेश प्रतिबंधित था, दोस्तों के साथ बातचीत करने की अनुमति नहीं थी और शौचालय जाने के दौरान सुरक्षा गार्ड उन पर कड़ी निगरानी रखते थे।
भाषा सुरभि