सिद्धरमैया ने प्रमुख परियोजनाओं संबंधी अनुदान रोकने पर केंद्र की आलोचना की
अमित माधव
- 14 May 2025, 08:32 PM
- Updated: 08:32 PM
बेंगलुरु, 14 मई (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने राज्य के लिए "घोषित अनुदान जारी नहीं करने" के लिए बुधवार को केंद्र की आलोचना की, जिसमें भद्रा बांध परियोजना के साथ ही गरीबों, बुजुर्गों और जरूरतमंदों के लिए पेंशन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए धनराशि शामिल है।
सिद्धरमैया ने जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समितियों (डीआईएसएचए) के कामकाज की एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। यह एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य सहभागी शासन और विचार-विमर्शपूर्ण लोकतंत्र को बढ़ावा देना है।
समिति के सदस्यों ने सुझाव दिया कि केंद्र का हिस्सा राज्य को दिलाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
सिद्धरमैया ने दोहराया कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में घोषणा की थी कि भद्रा अपर नदी परियोजना के लिए 5,300 करोड़ रुपये दिए जाएंगे, लेकिन अब तक राज्य को एक रुपया भी नहीं मिला है।
अपर भद्रा परियोजना का लक्ष्य लगभग 19 टीएमसीएफटी पानी का उपयोग करके चिक्कमगलुरु, चित्रदुर्ग, दावणगेरे और तुमकुरु जिलों में लगभग 2.25 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करना है।
इसके अतिरिक्त, परियोजना में 350 से अधिक जलाशय को 10.8 टीएमसीएफटी पानी से भरने और वाणी विलास जलाशय की क्षमता बढ़ाने की योजना है।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि 15वें वित्त आयोग में केंद्र की ओर से 5,495 करोड़ रुपये का विशेष अनुदान दिया जाना चाहिए था, जिसमें झील और पेरीफेरल रिंग रोड के लिए धन मिलाकर कुल 11,495 करोड़ रुपये शामिल हैं, लेकिन राज्य को कोई राशि नहीं मिली।
उन्होंने बैठक के दौरान कहा, ‘‘भले ही हम राज्य से 4.5 लाख करोड़ रुपये के कर का भुगतान करते हैं, लेकिन केंद्र से राज्य को थोड़ी सी भी सहायता नहीं मिलती। वे केंद्र द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के लिए भी पैसा नहीं देते हैं, लेकिन आप राज्य सरकार पर विकास के लिए पैसा नहीं होने का आरोप लगाते हैं।’’
सिद्धरमैया ने कहा कि सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन और दिव्यांग पेंशन योजनाओं के लिए राज्य अनुदान 5,665.95 करोड़ रुपये है, जबकि केंद्रीय अनुदान 559.61 करोड़ रुपये है, लेकिन केंद्र द्वारा केवल 113.92 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं।
उन्होंने सवाल किया कि अगर केंद्र सामाजिक योजनाओं के लिए दिए जाने वाले अनुदान में भी कटौती करता है तो कैसे काम चलाया जाएगा।
सिद्धरमैया ने कहा कि उन्होंने सीतारमण से दो बार मुलाकात की और अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने (वित्त मंत्री) इस पर ध्यान नहीं दिया।
सिद्धरमैया ने कर्नाटक के सांसदों की "चुप्पी साधे रखने" के लिए कड़ी आलोचना की। बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘आपको (सांसदों को) तय समय के भीतर अनुदान जारी कराने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए। आपको अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।’’
राज्य द्वारा दी जाने वाली विभिन्न पेंशन के बारे में सिद्धरमैया ने कहा कि राज्य सरकार कुल 5,665 करोड़ रुपये पेंशन देती है, जबकि केंद्र सरकार 559 करोड़ रुपये का योगदान देती है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘केंद्र सरकार यह छोटी राशि भी नहीं दे पा रही है। केंद्र ने इसे दो साल तक लंबित रखा है। ऐसा क्यों है?’’
इसके अलावा, उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार से पेंशन के मद में मिलने वाली राशि दो साल से राज्य को नहीं मिली है।
सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित अधिकांश परियोजनाओं पर प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र का नाम है। हालांकि, केंद्र के पैसे का एक अंश भी नहीं आ रहा है। क्या आपको (सांसदों को) इस लगातार हो रहे अन्याय पर सवाल नहीं उठाना चाहिए?’’
उन्होंने राज्य सरकार द्वारा केंद्र, केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्रों का विवरण साझा किया और बैठक के दौरान उन्हें पढ़कर विभिन्न मुद्दों को उजागर किया और सांसदों का ध्यान आकर्षित किया।
अधिकारियों ने सिद्धरमैया को बताया कि केंद्र से अभी तक मनरेगा के तहत धन प्राप्त नहीं हुआ है। अधिकारियों ने बैठक में विभिन्न प्रकार की लंबित केंद्रीय पेंशन राशि के बारे में भी बताया।
सिद्धरमैया ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि तीन महीने के भीतर मनरेगा कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी कारण से पिछली कार्य योजना छूट गई है, तो उसे अगली योजना में शामिल किया जाना चाहिए।
सिद्धरमैया ने उन्हें राज्य में मनरेगा योजना में अनियमितता करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने और आपराधिक मामला दर्ज करने का भी निर्देश भी दिया।
मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के अनुसार, मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत राज्य का अनुदान 24,960 करोड़ रुपये है। सीएमओ के अनुसार, उन योजनाओं में केंद्र का हिस्सा 22,758 करोड़ रुपये है, जिसमें से केंद्र द्वारा केवल 18,561 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं, जबकि 4,195 करोड़ रुपये अभी भी लंबित हैं।
अधिकारियों ने यह भी कहा कि केंद्र ने जल जीवन मिशन योजना के तहत 2023-24 में 7,656 करोड़ रुपये और 2024-25 में 3,233 करोड़ रुपये जारी नहीं किए हैं।
जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में पीने योग्य नल का पानी उपलब्ध कराने की योजना है, जिस पर सीतारमण ने अपने बजट भाषण में चर्चा की थी, जिसमें उन्होंने पूरा होने का लक्ष्य 2028 तक संशोधित किया था।
बाद में पत्रकारों से बात करते हुए सिद्धरमैया ने कहा कि 67 केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र और राज्य सरकार दोनों का योगदान शामिल है।
उन्होंने बताया, ‘‘ऐसी योजनाओं पर कुल व्यय 83 प्रतिशत है, जिसे आदर्श रूप से 100 प्रतिशत तक पहुंचना चाहिए। अधिकारियों द्वारा निधियों का पूरा उपयोग न करने का एक सामान्य कारण यह बताया जाता है कि केंद्रीय अनुदान अक्सर वित्तीय वर्ष के अंत में जारी किया जाता है।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र "प्रतिशोध की राजनीति" में लिप्त है, सिद्धरमैया ने कहा कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।
भाषा अमित