दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेएनयू के निष्कासित छात्रों को परीक्षा देने की अनुमति दी
देवेंद्र सुरेश
- 14 May 2025, 05:52 PM
- Updated: 05:52 PM
नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को निर्देश दिया है कि वह यौन उत्पीड़न के आरोप में निष्कासित नौ छात्रों को बुधवार से शुरू हो रही परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दे।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने जेएनयू को निर्देश दिया कि वह मामले की अगली सुनवाई की तिथि 28 मई तक छात्रावास खाली करने के लिए छात्रों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे।
अदालत ने 13 मई के अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं के वकील की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, विशेष रूप से इस तथ्य के मद्देनजर कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है, प्रतिवादी विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ताओं को सुनवाई की अगली तारीख तक अपनी परीक्षा देने की अनुमति दे और उनके खिलाफ छात्रावास खाली करने के लिए कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए।’’
जेएनयू ने पांच मई को छात्रों के खिलाफ अलग-अलग आदेश पारित करते हुए उन्हें दो सेमेस्टर के लिए निष्कासित कर दिया था।
छात्रों ने विश्वविद्यालय के फैसले को निरस्त करने का अनुरोध किया था।
छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता कुमार पीयूष पुष्कर ने कहा कि आदेश से पहले विश्वविद्यालय द्वारा जांच की गई थी, लेकिन याचिकाकर्ताओं को गवाहों से जिरह करने का मौका नहीं दिया गया।
उन्होंने कहा कि जेएनयू का फैसला टिकने लायक नहीं है क्योंकि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करके पारित किया गया है।
अदालत ने याचिका पर जेएनयू को नोटिस जारी किया और एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
छात्रों की याचिका में कहा गया है कि परीक्षाएं 14 मई या कुछ दिन में शुरू होने वाली थीं, लेकिन निष्कासन आदेश के तहत उन्हें इसमें शामिल होने से रोक दिया गया।
न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया कि अंतरिम राहत से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई विशेष लाभ नहीं होगा तथा उसके निर्देश मामले के फैसले के अधीन होंगे।
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स’ (सीएसएसएस) की 47 छात्राओं ने जेएनयू की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें 22 अक्टूबर 2024 को विश्वविद्यालय के सभागार में एक पार्टी के दौरान यौन उत्पीड़न और हिंसा का आरोप लगाया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि कुलपति ने उन्हें 25 अक्टूबर, 2024 को अपने कार्यालय में बुलाया और बिना कोई जांच या समिति गठित किए, उन्हें अवैध रूप से दो सेमेस्टर के लिए निष्कासित कर दिया और एक साल के लिए परिसर में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अप्रैल में उन्हें जांच रिपोर्ट के साथ एक ‘कारण बताओ नोटिस’ मिला था, जिसमें पूछा गया था कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए, जिसके बाद उन्होंने मुख्य प्रॉक्टर को अपना जवाब भेजा।
याचिका में कहा गया है कि हालांकि, गवाहों से जिरह करने का मौका दिए बिना ही उन्हें दो सेमेस्टर के लिए निष्कासित कर दिया गया और पांच मई को उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
भाषा
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