जावेद अख्तर ने पाक कलाकारों के भारत में काम करने पर कहा : फिलहाल मुमकिन नहीं
नोमान अविनाश
- 29 Apr 2025, 08:40 PM
- Updated: 08:40 PM
(राधिका शर्मा)
नयी दिल्ली, 29 अप्रैल (भाषा) गीतकार जावेद अख्तर ने मंगलवार को कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद यह सवाल पूछा ही नहीं जाना चाहिए कि "क्या हमें पाकिस्तानी कलाकारों को यहां काम करने की इजाजत देनी चाहिए," क्योंकि यह फिलहाल मुमकिन नहीं है।
वरिष्ठ पटकथा लेखक-शायर ने कहा कि भारत-पाकिस्तान सांस्कृतिक संबंधों में आज "कोई गर्मजोशी नहीं है।" उन्होंने कहा कि यह वक्त इस बारे में सोचने का भी नहीं है कि पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की इजाजत दी जानी चाहिए या नहीं।
अख्तर ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में कहा,“ इस बारे में बेहतर वक्त में सोचा जा सकता है और उम्मीद है कि कुछ सालों के बाद थोड़ी समझ पैदा होगी। और पाकिस्तान के प्रतिष्ठान का भारत के प्रति बेहतर रवैया होगा। तब इस पर विचार किया जा सकता है। लेकिन फिलहाल, यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए। मुमकिन नहीं है।”
उन्होंने कहा कि नुसरत फतेह अली खान, मेहदी हसन, गुलाम अली और नूरजहां जैसे पाकिस्तानी कलाकारों का अतीत में भारतीय अधिकारियों ने दिल खोलकर स्वागत किया था, लेकिन पाकिस्तानी प्रतिष्ठान ने बदले में ऐसा सुलूक नहीं किया।
सरकारी सूत्रों ने पिछले हफ्ते कहा था कि पाकिस्तानी अदाकार फवाद खान की फिल्म "अबीर गुलाल" को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज़ नहीं होने दिया जाएगा। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब 22 अप्रैल को कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम पहाड़ों में आतंकवादियों द्वारा 26 लोगों की हत्या के बाद इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है। पहले इस फिल्म को नौ मई को रिलीज़ किया जाना था।
यह पूछे जाने पर कि क्या प्रतिबंध उचित है, अख्तर ने कहा कि इस पर चर्चा के लिए उचित वक्त आएगा।
उन्होंने फिक्की द्वारा आयोजित "आईपी और म्यूजिक: फील द बीट ऑफ आईपी’ कार्यक्रम से इतर ‘पीटीआई-भाषा से कहा, “खास तौर पर हाल में जो कुछ भी हुआ, उसके बाद यह इस वक्त चर्चा का विषय भी नहीं होना चाहिए। पहलगाम में जो कुछ हुआ है, उसके कारण शायद ही कोई दोस्ताना भावना या गर्मजोशी है।”
गीतकार ने कहा, ‘‘सवाल यह होना चाहिए कि क्या हमें पाकिस्तानी कलाकारों को यहां काम करने की इजाजत देनी चाहिए?’’
भारतीयों द्वारा महान पाकिस्तानी कलाकारों को दिए गए शानदार स्वागत पर चर्चा करते हुए उन्होंने फैज़ अहमद फैज़ को उपमहाद्वीप का शायर बताया।
अख्तर ने कहा, “मैं (उन्हें) पाकिस्तानी शायर नहीं कहूंगा। वह पाकिस्तान में रह रहे थे क्योंकि उनका जन्म वहीं हुआ था। लेकिन वह उपमहाद्वीप के शायर थे, शांति और प्रेम के शायर थे। वह श्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भारत आए तो उनके साथ राष्ट्राध्यक्ष जैसा व्यवहार किया गया।”
उन्होंने कहा, "सरकार ने उन्हें जिस तरह का सम्मान दिया और जिस तरह से उनकी देखभाल की, वह सराहनीय है। लेकिन मुझे अफसोस है कि इसका कभी भी प्रतिदान नहीं मिला। मुझे पाकिस्तान के लोगों से कोई शिकायत नहीं है..."
अस्सी वर्षीय गीतकार ने कहा कि सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर 60 और 70 के दशक में पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय थीं, लेकिन उन्होंने वहां एक बार भी प्रस्तुति नहीं दी।
उन्होंने कहा, "मैं पाकिस्तान के लोगों से शिकायत नहीं करूंगा, क्योंकि वे उनसे (मंगेशकर) प्यार करते थे। इसलिए वह इतनी लोकप्रिय थीं... वे उनकी प्रशंसा करते थे, लेकिन कुछ रुकावटें थीं। और रुकावटें व्यवस्था में थीं... जब व्यवहार सिर्फ एकतरफा होता है, तो एक वक्त के बाद ऊब आ जाती है। यह बिल्कुल समान रूप से वैध है। हमें आपसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती, लेकिन यह कब तक चलता रहेगा?"
अख्तर ने यह भी कहा कि भारत में पाकिस्तानी कलाकारों को रोकने से पाकिस्तान की सेना और कट्टरपंथी खुश होंगे जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऊंची दीवार चाहते हैं।
उन्होंने कहा, "पाकिस्तानी यह नहीं देख पाएंगे कि भारत के हर नागरिक को किस तरह की आज़ादी, किस तरह का विशेषाधिकार प्राप्त है... वे दूरी चाहते हैं क्योंकि यह उनके लिए सुविधाजनक है।”
शायर ने कहा, "हम पाकिस्तानियों के साथ जिस तरह का सौहार्दपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं, वह उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है... क्योंकि फिर वे वापस जाते हैं और भारतीय समाज के बारे में बताते हैं और वे बहुत खुश होते हैं कि उन्हें यह मौका मिला। वहां के दक्षिणपंथी इसे पसंद नहीं करते।"
भाषा नोमान