रिफाइंड तेल को लेकर सोशल मीडिया पर भ्रामक सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करे एफएसएसएआई : एसईए
राजेश राजेश अजय
- 28 Jul 2025, 07:49 PM
- Updated: 07:49 PM
नयी दिल्ली, 28 जुलाई (भाषा) सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण और खाद्य सुरक्षा नियामक- एफएसएसएआई से सोशल मीडिया मंच पर प्रसारित हो रहे रिफाइंड खाद्य तेलों पर भ्रामक सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
सीसीपीए और एफएसएसएआई को लिखे एक पत्र में, एसईए ने कहा कि एक इंस्टाग्राम खाते द्वारा पोस्ट किया गया एक वायरल वीडियो रिफाइंड खाद्य तेलों के बारे में ‘खतरनाक और तथ्यात्मक रूप से गलत दावे’ कर रहा है, उन्हें ‘रसायन युक्त’ और ‘विषाक्त’ बता रहा है।
एसईए ने बयान में कहा, ‘‘इस वीडियो ने व्यापक रूप से ध्यान आकर्षित किया है, जिससे उपभोक्ताओं में भ्रम पैदा हो रहा है और रिफाइंड खाद्य तेलों की सुरक्षा पर निराधार संदेह पैदा हो रहा है, जो भारत में खाद्य तेल की खपत का एक बड़ा हिस्सा हैं।’’
एसोसिएशन ने चेतावनी दी कि इस तरह की गलत सूचना न केवल उपभोक्ताओं के विश्वास को बल्कि किसानों की आजीविका और भारत के खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र की विश्वसनीयता को भी खतरे में डालती है। इसने जनता को सटीक, विज्ञान-समर्थित जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया।
वायरल वीडियो का खंडन करने के लिए, उद्योग निकाय ने साक्ष्य-आधारित तथ्यों के साथ खाद्य तेल शोधन की वैज्ञानिक और नियामकीय वास्तविकताओं को स्पष्ट करने के लिए एक व्यापक व्याख्यात्मक नोट जारी किया है।
एसईए ने बताया कि भारत में खाद्य तेल की लगभग 85 प्रतिशत खपत ताड़, सोयाबीन, सूरजमुखी, चावल भूसी और बिनौला जैसे परिष्कृत तेलों से होती है। इन तेलों का प्रसंस्करण भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के सख्त मानदंडों के तहत किया जाता है और ये विश्व स्तर पर स्वीकृत कोडेक्स एलिमेंटेरियस मानकों को पूरा करते हैं।
एसोसिएशन ने खाद्य-ग्रेड हेक्सेन के उपयोग का बचाव करते हुए कहा कि यह सुरक्षित और विनियमित है। हेक्सेन एक खाद्य-ग्रेड विलायक है जिसका उपयोग आमतौर पर तेल निष्कर्षण में किया जाता है और प्रसंस्करण के दौरान इसे हटा दिया जाता है, जिससे अंतिम उत्पाद एफएसएसएआई द्वारा निर्धारित पांच पीपीएम की सीमा को पूरा करते हैं, जो विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त सुरक्षित सीमाओं के भीतर है।
एसईए ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि शोधन एक वैज्ञानिक रूप से आवश्यक और स्वीकृत प्रक्रिया है, जो प्राकृतिक अशुद्धियों को दूर करने और खाद्य तेलों की सुरक्षा, स्थिरता और ‘शेल्फ लाइफ’ सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। इसने कहा कि दुर्गन्ध दूर करने जैसी प्रक्रियाओं के लिए एफएसएसएआई के नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है।
एसोसिएशन ने कहा, ‘‘वायरल वीडियो में दिखाए गए भ्रामक संदेश कृषि-अर्थव्यवस्था के लिए व्यापक जोखिम पैदा करते हैं, संभावित रूप से उपभोक्ताओं को हतोत्साहित करते हैं, तिलहन की खेती को प्रभावित करते हैं, और अत्यधिक विनियमित उद्योग में भरोसे को नुकसान पहुँचाते हैं।’’
भाषा राजेश राजेश