मस्तिष्काघात के उपचार में संगठित पुनर्वास की है अहम भूमिका: चिकित्सा विशेषज्ञ
राजकुमार सुरेश
- 21 May 2025, 05:56 PM
- Updated: 05:56 PM
नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) पिछले वर्ष जब 69-वर्षीय एक महिला गंभीर मस्तिष्काघात के बाद बहुत अवचेतन स्थिति में पहुंच गयी थीं तो उनके परिवार को लगा कि अब बहुत बुरा दौर आने वाला है।
विभिन्न शहरों के चिकित्सकों ने विदेश से आये उनके बेटे को बताया कि उसकी मां के ठीक होने की संभावना न के बराबर है। वह बेहोश थी, शरीर में कोई हरकत नहीं थी और होश के केवल हल्के लक्षण ही दिखे रहे थे।
लेकिन आज, वह बैठ सकती है, बातचीत सुन सकती है और इशारों से जवाब दे सकती है। यह कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि यह समय पर ‘न्यूरो-पुनर्वास’, वैज्ञानिक सटीकता और अथक लगन का नतीजा है।
अब जब भारत विश्व स्ट्रोक जागरूकता माह मना रहा है, तब यह घटना भारतीय मस्तिष्काघात देखभाल में एक महत्वपूर्ण, लेकिन बहुत कम ध्यान दी गयी सच्चाई को रेखांकित करती है।
आपातकालीन उपचार से जीवन बचाया जा सकता है, लेकिन पुनर्वास ही उन जीवन को अर्थ प्रदान करता है।
कई अस्पतालों द्वारा हाथ खड़े कर देने के बाद, महिला रोगी को ‘हेल्थ केयर ऐट होम (एचसीएएच)’ में भर्ती कराया गया, जो ‘रिकवरी और पुनर्वास’ अस्पतालों की एक शृंखला है।
वहां, वह ‘फिजिकल मेडिसिन और रिहैबिलिटेशन (पीएमआर)’ के विशेषज्ञों के नेतृत्व में चिकित्सकीय देखरेख में बहु-विषयक न्यूरो-पुनर्वास कार्यक्रम से गुजरीं।
एचसीएएच के सह-संस्थापक और मुख्य परिचालन अधिकारी डॉ. गौरव ठुकराल ने बताया कि उनकी उपचार योजना में ‘मल्टीमॉडल सेंसरी स्टिमुलेशन (इंद्रियों को जागृत करने की विधि), हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी (एचबीओटी-शत प्रतिशत ऑक्सीजन श्वसन विधि) और उन्नत ‘रोबोटिक और वर्चुअल थेरेपी’ शामिल थीं, जो निष्क्रिय तंत्रिका मार्गों को सक्रिय करने और कार्यात्मक बहाली में मदद के लिए डिज़ाइन की गई थीं।
डॉ. ठुकराल ने कहा, ‘‘हम आपातकालीन देखभाल के बाद बहुत से लोगों की ज़िंदगी को सिर्फ़ इसलिए ठहर जाते हुए देखते हैं, क्योंकि समय पर संगठित पुनर्वास शुरू नहीं किया जाता है।’’
दिल्ली के बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के डॉ. वरुण रेहानी ने कहा कि मस्तिष्काघात की देखभाल में, आपातकालीन कक्ष या आईसीयू से परे भी तत्परता होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि मस्तिष्काघात के बाद 90 दिनों का सुनहरा समय वह होता है जब मस्तिष्क की ‘न्यूरोप्लास्टिसिटी’ अपने उच्चतम स्तर पर होती है तथा इस समय हस्तक्षेप करने (उपयुक्त उपचार) से दीर्घकालिक स्वास्थ्य बहाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
डॉ. रेहानी इस अस्पताल के ‘सेंटर फॉर न्यूरोसाइंसेज, एडवांस्ड एन्यूरिज्म ट्रीटमेंट, मिर्गी, पार्किंसंस डिजीज’ में ‘न्यूरोलॉजी कंसल्टेंट’ हैं।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘पुनर्वास में देरी से उस महत्वपूर्ण अवसर को खोने का खतरा है। प्रारंभिक, गहन और वैज्ञानिक रूप से निर्देशित देखभाल परिणामों में नाटकीय रूप से सुधार कर सकते हैं। देखभाल में ‘न्यूरोस्टिम्यूलेशन’ और साक्ष्य-आधारित उपचार शामिल हैं।
महिला रोगी के चेतना विकार (डीओसी) का निदान किया गया था, यह एक ऐसी स्थिति है जिसे अक्सर अपरिवर्तनीय समझ लिया जाता है।
डॉ. ठुकराल ने कहा कि उसकी प्रगति उभरते वैश्विक और भारतीय साक्ष्यों के अनुरूप है, जो स्वास्थ्य बहाली में प्रारंभिक ‘न्यूरोप्लास्टिक’ उत्तेजना की भूमिका को उजागर करते हैं।
डॉ. ठुकराल का कहना है कि हर साल मस्तिष्काघात के 18 लाख से अधिक मामलों के साथ, भारत में मस्तिष्काघात के बाद विकलांगता में तेज़ वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन खासकर पीएमआर विशेषज्ञों के नेतृत्व में संगठित पुनर्वास देश के अधिकांश हिस्सों में कम उपयोग किया जाता है।
भाषा राजकुमार