नीति आयोग के अध्ययन पत्र में रक्षा कानूनों में संशोधन का सुझाव
प्रेम प्रेम अजय
- 20 May 2025, 04:26 PM
- Updated: 04:26 PM
नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा) नीति आयोग के एक अध्ययन पत्र में भू-राजनीतिक तनाव, साइबर सुरक्षा खतरों और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधानों को ध्यान में रखते हुए एक जुझारू और सक्षम रक्षा आपूर्ति शृंखला विकसित करने के लिए रक्षा कानूनों में संशोधन और परिवर्तन का सुझाव रखा गया है।
सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग ने इस अध्ययन पत्र में कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और परिचालन तत्परता के लिए एक जुझारू एवं सक्षम रक्षा आपूर्ति शृंखला महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही आपूर्ति शृंखला का जुझारूपन, दक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली एक सशक्त लॉजिस्टिक रणनीति का विकास भी अनिवार्य है।
आयोग के अध्ययन पत्र के मुताबिक, ‘‘कानूनी और नीतिगत ढांचे राष्ट्रीय रक्षा आपूर्ति शृंखलाओं की सुरक्षा और परिचालन तत्परता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’’
इसमें कहा गया है कि रक्षा आपूर्ति शृंखलाओं के जासूसी, डेटा उल्लंघन और तोड़फोड़ सहित साइबर खतरों के प्रति तेजी से संवेदनशील होते जाने से ब्लॉकचेन सुरक्षा और एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन सहित मजबूत साइबर सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना रक्षा आपूर्ति शृंखलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत को अपनी रक्षा आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने के लिए रक्षा अधिनियम (1962) को तत्काल अद्यतन करने की जरूरत है। वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य और साइबर खतरों को देखते हुए यह अहम है कि देश घरेलू उत्पाद आपूर्ति को अनिवार्य करे और महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करे।
अध्ययन पत्र में रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को सरल बनाने, अनिवार्य साइबर सुरक्षा ऑडिट लागू करने और गैर-अनुपालन के लिए दंड लगाने का सुझाव दिया गया है। इसके अलावा घरेलू विनिर्माताओं के लिए कानूनी प्रोत्साहन और निर्यात नियमों का सरलीकरण आवश्यक है।
इसमें रक्षा खरीद और साइबर सुरक्षा कानूनों को समय-समय पर अद्यतन करने के लिए एक समीक्षा समिति की स्थापना का भी प्रस्ताव किया गया है।
सैन्य लॉजिस्टिक में स्टॉक के पारंपरिक मॉडल की जगह वास्तविक समय में निगरानी और पूर्वानुमान विश्लेषण के साथ उन्नत स्टॉक प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने का सुझाव दिया गया है।
सैन्य आपूर्ति शृंखला में जुझारूपन और दक्षता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को एक रणनीतिक दृष्टिकोण के रूप में देखा जा रहा है।
नीति आयोग के अध्ययन पत्र में कहा गया है, ‘‘निजी क्षेत्र के नवाचार और विशेषज्ञता का लाभ उठाकर, पीपीपी मॉडल संसाधन उपयोग को अनुकूलित कर सकते हैं, लागत कम कर सकते हैं और परिचालन तत्परता में सुधार कर सकते हैं।’’
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